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न्यायोचित प्रतिफल [Lawfull Consideration]

न्यायोचित प्रतिफल [Lawfull Consideration]

प्रतिफल का अर्थ :- एक वैध अनुबंध के लिए एक न्यायोचित प्रतिफल का होना अति आवश्यक है। यदि किसी भी अनुबंध में प्रतिफल का अभाव होता है तो यह एक बाजी या जुए का  ठहराव कहलाता है और बिना प्रतिफल के किसी भी अनुबंध का कोई औचित्य नहीं रह जाता है। कोई भी अनुबंध करते समय दो पक्षकार होते हैं जो एक दूसरे को पारस्परिक वचन देते हैं। यही वचन एक दूसरे के वचनों के बदले में प्रतिफल होता है।
        सरल बातचीत की भाषा में प्रतिफल से औचित्य कुछ के बदले में कुछ (some thing about something)से है। यदि कोई पक्षकार कोई कार्य करने या न करने का वचन देता है, तो उसे उसके 'बदले में कुछ' (something in return or proqua) मिलना चाहिए। यदि उसे यह नही मिलता तो यह वचन वैध नहीं होगा । इसी कुछ को प्रतिफल का नाम दिया जाता है। अन्य शब्दों में , "प्रतिफल वह कीमत है जो किसी दूसरे को उसका  वचन खरीदने के लिए दी जाती है।" जब कोई भी व्यक्ति दूसरे को वचन देता है, तो वह ऐसा उस दूसरे व्यक्ति से कोई लाभ पाने के लिए करता है जो दूसरा व्यक्ति स्वयं देने योग्य है या उसे दिलाने के योग्य है। प्रतिफल लाभ, हानि, हित, अहित तथा दायित्व के रूप में हो सकती है, किन्तु जिस ठहराव में प्रतिफल नहीं होता है वो ठहराव राजनियम द्वारा प्रवर्तनीय नहीं होता है।
उदाहरण (Example):- यदि महेश, राम को ₹200 का उपहार देने का वचन देता है और उसके बदले में महेश को कुछ (प्रतिफल) नही मिलता तो बाद में महेश द्वारा उपहार देने का अपने इरादा बदल लेने पर राम , महेश वचन भंग का दावा नहीं कर सकता ।

प्रतिफल की परिभाषा (Definitions of Consideration):- 

ब्लैकस्टोन के अनुसार,"प्रतिफल एक ऐसी क्षतिपूर्ति है, जो वचनदाता को उसके वचन के बदले में दूसरे पक्षकार द्वारा दिया जाता है।" ( Consideration is the recompense given by the party contracting to the other. -Blackstone)
भारतीय अनुबंध अधिनियम की धारा 2(d) के अनुसार, " जब वचनदाता की इच्छा पर वचनग्रहीता ने अथवा अन्य व्यक्ति ने कोई कार्य किया है या उसके करने से अलग रहा है, कोई कार्य करता है या उसके करने से अलग रहता है अथवा करने या करने से अलग रहने का वचन देता है तो इस प्रकार का कार्य करना या अलग रहना या वचन उस वचन का प्रतिफल कहलाता है।"

प्रतिफल के नियम के अपवाद (धारा 25) Exceptions to the rule of consideration :-

 वैसे तो यह पहले ही स्पष्ट हो चुका है कि वैध प्रतिफल न होने पर सभी अनुबंध व्यर्थ माने जाते हैं परंतु धारा25 के अनुसार इस महत्वपूर्ण नियम के भी कुछ अपवाद हैं अर्थात निम्नलिखित परिस्थितियों में प्रतिफल के न होने पर भी वैध अनुबंध माने जाते है :-
1.  स्वाभाविक प्रेम या स्नेह के कारण वचन ( Promise made out of Natural love and Affection): धारा 25(1) के अनुसार ," जहाँ ठहराव स्वाभाविक प्रेम एवं स्नेह से प्रेरित होकर ऐसे पक्षकारों के बीच किया गया है जो एक दूसरे के निकट संबंधी हैं तथा ठहराव लिखित है और उसकी रजिस्ट्री की जा चुकी है तो ठहराव बिना प्रतिफल के भी वैध होगा।"
ऐसे ठहरावों में निम्नलिखित चार बातों का ध्यान रखना आवश्यक है:-
(1) ठहराव लिखित होना।
(2) ठहराव का प्रचलित राजनियम के अनुसार पंजीकरण (Registration) होना।

(3) पक्षकारों में निकट संबंध होना ।
(4) पक्षकारों के बीच स्वाभाविक प्रेम एवं स्नेह।
इस धारा में ध्यान देने वाली विशेष बात यह है कि पक्षकारों का निकट संबन्धी होना पर्याप्त नहीं है बल्कि उनमें स्वाभाविक प्रेम एवं स्नेह होना भी आवश्यक है। यदि स्वाभाविक प्रेम एवं स्नेह का अभाव है तब वह अनुबंध इस अपवाद के अंतर्गत वैध नहीं माना जाएगा।
2.अवधि-वर्जित ऋण का भुगतान का वचन (Promise to pay a Time-Barred Debt):- धारा 25(3) के अनुसार यदि कोई ऋण अवधि वर्जित हो चुका है और अब इस ऋण को चुकाने के लिए ऋण दाता को लिखित रूप में वचन देता है या ऋणी के अधिकृत प्रतिनिधि द्वारा ऐसा किया जाता है तो अनुबंध वैध होगा।
3. अभिकरण अनुबंध (Contract of Agency):- भारतीय अनुबंध अधिनियम की धारा 185 के अनुसार अभिकरण के अनुबंध में प्रतिफल की आवश्यकता नहीं होती।
4. निः शुल्क निक्षेप (Gratuitious Bailment):- निः शुल्क निक्षेप में प्रतिफल का होना आवश्यक नहीं है, जैसे- a अपना फर्नीचर b की शादी पर निः शुल्क देने का अनुबन्ध करे।
5. दान तथा उपहार (Gift and Donation):- दान तथा उपहार देने का वचन किसी प्रकार का वैधानिक दायित्व प्रकट नहीं करता है। अतः दान या उपहार का वचन देने वाले वचनदाता को न्यायालय में वचन के निष्पादन के लिए बाध्य नही किया जा सकता है।

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