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Introduction to Accounting - लेखांकन का परिचय

Introduction to Accounting - लेखांकन का परिचय

Advantages of Accounting :-
निमंलिखित एकाउंटिंग रखने से लाभ होता है -
1) एकाउंटिंग से हम किसी विशेष समय की अवधि में लाभ या हानि हुई है यह समझ सकते है।
2) हम कारोबार के निम्न वित्तीय स्थिति को समझ सकते है 
अ) व्यवसाय में है कितनी सम्पति है|
ब) बिजनेस पर कितना ऋण है|
ग) बिजनेस में कितनी किपटल है|
3) इसके अलावा, हम एकाउंटिंग रखने से बिजनेस के लाभ या हानि के कारण को समझ सकते है |
ऊपर दिए गय फायदो से हमें आसानी से यह समझ में आता है की एकाउंटिंग बिजनेस की आम है|

Trade (व्यापर) - कोई भी कार्य जिसमे वस्तुओ का क्रय -विक्रय लाभ कमाने के उद्देश्य से किया जाता है व्यापर कहलाता है
Profession (पेशा) - कोई भी कार्य जिसमे पूर्ब प्रशिक्षण की आबश्यकता होती है पेशा कहलाता है
जैसे - वकील ,अध्यापक आदि


Busineess(व्यवसाय) - ऐसा कोई कार्य जो लाभ प्राप्त करने के लिए किया गया हो व्यवसाय कहलाता है
जैसे बैंक,बीमा आदि


Owner (मालिक) - वह व्यकित या व्यक्तियों का समूह,जो व्यापार में आवश्यक पॅूजी लगाते हैं व्यापार संचालन करते है व्यापार का जाखिम उठाते है तथा लाभ व हानि के अधिकारी होते है वह व्यापार के स्वामी कहलाते है

Capital (पूॅजी) - वह धन राशि जो व्यापारी माल,रोकड़ अथवा सम्पत्ति के रूप मे लगाकर प्रारम्भ करता है पूॅजी कहलाती है

Drawing (आहरण या निजि व्यय) - व्यापारी अपने निजि कार्य के लिए रोकड़ या माल फर्म से निकालता है आहरण कहलाता है

Goods (माल) - जिस वस्तु से व्यापारी व्यापार प्रारम्भ करता है वह उसका माल कहलाता है

Purchases(क्रय) -  जो माल व्यापारी द्वारा खरीदा जाता है क्रय कहलाता है
Purchases return (क्रय वापसी) - खरीदे हुए माल मे से जो माल विक्रेता को वापस कर दिया जाता है वह क्रय वापसी कहलाती है

Sales (विक्रय) - जो माल वेचा जाता है विक्रय कहते है

Sales return (विक्रय वापसी) - जब विके हुए माल मे से कुछ माल वापस आ जाता है उसे विक्रय वापसी कहते है

Proprietor(व्यापार का स्वामी) - वह व्यकित जो व्यापार में पूॅजी लगाता है तथा व्यापार का संचालन करता है व्यापार का स्वामी कहलाता है

Liabilities (दायित्व) - वह सव ऋण जो अन्य व्यक्तियों या अपने स्वामी को चुकाने होते है दायित्व कहलाते है
ये दो प्रकार के होते है

1.Long term/Fixed Liabilities (स्थायी दायित्व) ये वह दायित्व है एक साल के बाद या व्यापार समाप्त करने पर चुकाना होता है
2.Short term/Current Liabilities (चालू दायित्व) ये वह दायित्व है जो एक साल या कम समय मे चुकानी होती है

Stock (रहतिया) - किसी व्यापार मे वर्तमान मे जो माल हमारे पास उपलब्ध है वह रहतिया कहलाता है साल के अन्त मे जो माल विना बिके रह जाता है वह अन्तिम रहतिया कहलाता है और अगले साल के पहले दिन वही माल प्रारम्भिक रहतिया कहलाता है

Creditor (लेनदार) - वह व्यक्ति या संस्था जो किसी अन्य व्यक्ति या संस्था को उधार माल या पैंसा उधार देती हैं ऋणदाता या लेनदार कहलाती है

Debtor (देनदार) - वह व्यक्ति या संस्था जो किसी अन्य व्यक्ति या संस्था से उधार माल या पैंसा उधार लेता है ऋणी या देनदार कहलाता है

Assests (सम्पत्ति) - व्यापार मे समस्त वस्तुएॅ जो संचालन मे सहायक होती है सम्पत्ति कहलाती है
ये दो प्रकार की होती है

Fixed assets (अचल या स्थायी सम्पत्ति) - वे वस्तुए जो व्यापार को चलाने के लिए स्थायी रूप से खरीदी जाती है स्थायी सम्पत्ति कहलाती है और जिन्हे वेचने के लिए नही खरीदा जाता है जैसे भवन,मोटरगाड़ी, फर्नीचर आदि

Current assets (चल या अस्थायी सम्पत्ति) - वह सम्पत्ति जो स्थायी रूप से व्यापार मे नही रहती है जैसे रोकड़,बैंक मे जमा पैसा, स्टोक आदि

Expenses (व्यय) - माल को खरीदने तथा बेचने मे जो खर्चे होते है वह व्यय कहलाते है
ये दो प्रकार के होते है

Direct expenses (प्रत्यक्ष व्यय) - ये वे खर्चे होते है जिन्हे व्यापारी माल खरीदते वक्त करता है या माल के उत्पादन मे करता है अर्थात कच्चे माल पर होने वाला खर्चा प्रत्यक्ष व्यय कहलाता है
Indirect expenses (अप्रत्यक्ष व्यय) - ये वह खर्चे होते है जो वस्तु के क्रय या वस्तु के निर्माण से न होकर ,वस्तु की बिक्री या कार्यलय व्यय से होती है

Revenue (राजस्व) - माल को वेचने पर जो प्राप्ती होती है वह राजस्व कहलाता है

Income (आय) - किसी भी माल को वेचने पर उससे जो राजस्व प्राप्त होता है उसमे से जो खर्चे को घटाने के वाद जो राशि वचती है उसे आय कहते है
ये दो प्रकार की होती है

Direct income (प्रत्यक्ष आय) - यह वह आय होती है जो मुख्य व्यवसाय से प्राप्त होती है
Indirect income (अप्रत्यक्ष आय) - यह वह आय होती है जो मुख्य व्यवसाय को छोड़ कर होती है जैसे किराया,व्याज आदि

Discount (बट्टा या छूट) - व्यापारी द्वारा दिये जाने वाली रियायत छूट या बट्टा कहलाती है
ये दो प्रकार की होती है

Trade discount(व्यापारिक बट्टा) - व्यापारी माल वेचते समय ग्राहक के माल मे जो छूट देता है वह व्यापारिक बट्टा कहलाता है या बिल मे कुछ पैसा कम कर देता है
Cash discount (नगद बट्टा) - जब किसी ग्राहक को कोई माल उधार वेचा जाता है और उसे निश्चित अवधि मे पैसा देना वताया जाता है अगर वह अविध से पहले पैसा जमाकर देता है तो उसे जो छूट दी जाती है वह कैस डिसकोन्ट कहलाता है

Bad debts (डूवत ऋण) - जव उधार की रकम वापस नही मिलती है उसे डूवत ऋण कहते है

Transaction (लेनदेन) - व्यापार मे जिन वस्तुओ का क्रय विक्रय होता है उन्हे लेन देन कहते है

Voucher (प्रमाणक) - व्यापार सम्वन्धी सभी व्यवहारो के लेनदेन के प्रमाणो के लिए जो डाकोमेन्ट लिए तथा दिये जाते है प्रमाणक कहलाते है

Ledger (लेजर) - लेजर एक बुक होता है जिसमें पर्सनल, रियल या नॉमिनल के सभी अकाउन्‍ट होते है, जिनकी एंन्‍ट्री जर्नल या सहायक पुस्‍तीका में होती है|

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